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General Hindi (वर्णमाला) MP Patwari PDF 2023
- March 12, 2023
- Posted by: Admin
- Category: Hindi BPSC MP Patwari Exam MPPSC State PSC Exams UPPSC UPSC
General Hindi (वर्णमाला) MP Patwari PDF 2023
वर्णमाला
वर्णों के व्यवस्थित व क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिंदी वर्णमाला कुल 52 वर्णों से मिलकर बनी है अथवा हिन्दी वर्णमाला में 52 वर्ण हैं। इसमें कुल 11 स्वर, 33 व्यंजन व इनके अतिरिक्त अन्य 8 वर्ण होते हैं।
हिन्दी वर्णमाला :-
अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ , ए , ऐ , ओ , औ (11 स्वर)
अं , अः (2 अयोगवाह)
क , ख , ग , घ , ङ
च , छ , ज , झ , ञ
ट , ठ , ड , ढ , ण
त , थ , द , ध , न
प , फ, ब , भ , म (25 स्पर्श व्यंजन)
य , र , ल , व (4 अंतस्थ व्यंजन)
श , ष , स , ह (4 ऊष्म व्यंजन)
क्ष , त्र , ज्ञ , श्र (4 संयुक्त वर्ण)
ड़ , ढ़ (2 अन्य वर्ण)
स्वर –
वे वर्ण जिनका उच्चारण बिना अवरोध के होता है, वर्ण कहलाते हैं। इनके उच्चारण में भीतर से निकलती वायु मुख से निर्बाध रूप से निकलती है। इनके उच्चारण में कंठ व तालु का प्रयोग होता है, जीभ और होंठ का नहीं। इनके उच्चारण में किसी दूसरे वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये स्वतंत्र हैं। हिन्दी वर्णमाला में स्वरों की संख्या 11 है जिनका वर्गीकरण तीन भागों में किया गया है –
- हृस्व स्वर – अ, इ, उ, ऋ।
- दीर्घ स्वर – आ, ई, ऊ।
- संयुक्त स्वर – ए, ऐ, ओ, औ।
1. ह्रस्व स्वर –
वे स्वर जिनके उच्चारण में कम से कम समय लगे, ह्रस्व स्वर कहलाते हैं, जैसे अ , इ , उ , ऋ।
हिंदी में ये कुल चार ह्रस्व स्वर हैं। इन्हें मूल स्वर कहा जाता है।
2. दीर्घ स्वर –
जिस स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से दोगुना समय लगे, उनको दीर्घ स्वर कहा जाता है। आ , ई , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ दीर्घ स्वर हैं। हिंदी वर्णमाला में दीर्घ स्वरों की संख्या 7 है।
3. प्लुत स्वर –
जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से तीन गुना समय लगे, उन्हें प्लुत स्वर कहा जाता है। इनके उदाहरण हैं ओ3म , हे राम! इन्हें त्रिमात्रिक स्वर भी कहा जाता है।
अयोगवाह
हिंदी वर्णमाला में स्वर और व्यंजन के बीच के दो वर्ण ‘ अं , अः‘ को अयोगवाह के नाम से जाना जाता है। हालांकि इन्हें स्वरों के साथ रखा तो गया है परंतु इन्हे स्वर की संज्ञा नहीं दी गई। स्वरों के साथ प्रयुक्त होने के कारण ये व्यंजनों की श्रेणी में भी नहीं आते। स्वर व व्यंजनों में किसी के साथ योग न करने के कारण इन्हें अयोगवाह की संज्ञा दी गई है।
अनुनासिक, निरनुनासिक –
वे स्वर जिनका उच्चारण नाक व मुँह से होता है और उच्चारण में लघुता रहती है, अनुनासिक कहलाते हैं। जैसे – आँख, आँगन, आँवला, दाँत, आंगन। केवल मुँह से बोले जाने वाले स्वर वर्णों को निरनुनासिक कहा जाता है।
अनुस्वार
हिंदी में प्रयुक्त वे वर्ण जिनका उच्चारण नासिका (नाक) से होता है, वे वर्ण अनुस्वार कहलाते हैं। उदाहरण – अं और स्पर्श व्यंजनों के हर वर्ग (क वर्ग , च वर्ग , ट वर्ग , त वर्ग , प वर्ग) का पंचम वर्ण।
व्यंजन –
हिन्दी वर्णमाला के वे वर्ण जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से नहीं किया जा सकता। इनका उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता है। व्यंजनों के उच्चारण में भीतर से आती वायु मुख में कहीं न कहीं बाधित होती है। अर्थात स्वरों की भांति इनका उच्चारण अबाध (बाधारहित) नहीं होता। हिन्दी वर्णमाला में स्पर्श व्यंजन, अन्तःस्थ व्यंजन, ऊष्म व्यंजन, संयुक्त व्यंजन, द्विगुण व्यंजन होते हैं।
स्पर्श व्यंजन –
इनका उच्चारण कण्ठ, तालु, मूर्द्धा, दन्त, ओष्ठ से होता है। इसीलिए इन्हें स्पर्श व्यंजन कहा जाता है। इन्हें वर्गीय व्यंजन भी कहा जाता है। इन्हें 5 वर्गों में विभक्त किया गया है। इन्हें उच्चारण स्थान के आधार पर अलग-अलग वर्गों में रखा गया है।
- क वर्ग (कण्ठ से) – क, ख, ग, घ, ङ
- च वर्ग (तालु से) – च, छ, ज, झ, ञ
- ट वर्ग (मूर्द्धा से) – ट, ठ, ड, ढ, ण
- त वर्ग (दन्त से) – त, थ, द, ध, न
- प वर्ग (ओष्ठ से) – प, फ, ब, भ, म
अन्तःस्थ व्यंजन –
इनकी संख्या चार है – य, र, ल, व। इनका उच्चारण जीभ, तालु, दाँत, ओठों के परस्पर सटने से होता है। परंतु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता। अतः ये चारो अन्तःस्थ व्यंजन अर्द्धस्वर कहलाते हैं।
ऊष्म व्यंजन –
इनका उच्चारण एक प्रकार की रगड़ (घर्षण) से उत्पन्न ऊष्म वायु से होता है। हिन्दी वर्णमाला में इनकी संख्या चार है – श, ष, स, ह।
संयुक्त वर्ण –
वे वर्ण जो दो वर्णों के मेल से बने होते हैं, संयुक्त वर्ण कहलाते हैं। हिंदी वर्णमाला में संयुक्त वर्णों की संख्या चार (क्ष,त्र,ज्ञ,श्र) है।
क्+ष=क्ष, त्+र=त्र, ज्+ञ=ज्ञ, श्+र=श्र।
अल्पप्राण और महाप्राण व्यंजन –
उच्चारण में वायु प्रक्षेप की दृष्टि से व्यंजनों का ये भेद किया गया है। जिसके उच्चारण में वायु पूर्व से उल्प मात्रा में निकले उसे अल्पप्राण व्यंजन कहते हैं। प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा, पांचवां वर्ण अल्पप्राण व्यंजन होता है। अन्तःस्थ व्यंजन भी अल्पप्राण व्यंजन हैं।
महाप्राण व्यंजन के उच्चारण में श्वांस अधिक मात्रा में निकलती है। इसमें ‘हकार’ जैसी ध्वनि का विशेष महत्व है। प्रत्येक वर्ग का दूसरा व चौथा वर्ण और ऊष्म वर्ण महाप्राण की श्रेणी में आते हैं।
अघोष वर्ण – स्पर्श व्यंजनों के प्रत्येक वर्ण का पहला व दूसरा वर्ण और श, ष, स।
घोष वर्ण – प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवां वर्ण, य, र, ल, व, ह और सारे स्वर घोष वर्णों की श्रेणी में आते हैं।
हिन्दी के नए वर्ण –
हिन्दी वर्णमाला में पाँच नए व्यंजनों (क्ष, त्र, ज्ञ, ड़, ढ़) को जोड़ा गया है। इनमें क्ष (क्+ष), त्र (त्+र), ज्ञ (ज्+ञ) संयुक्त व्यंजन हैं। इन तीनों के खण्ड किये जा सकते हैं। अतः इनकी गिनती स्वतंत्र वर्णों में नहीं की जाती। ड और ढ के नीचे बिन्दु लगाकर दो नए वर्णों को वर्णमाला में जोड़ा गया है। ये द्विगुण व्यंजन कहलाते हैं।
पंचमाक्षर –
हिन्दी वर्णमाला में अनुनासिक वर्णों की संख्या पाँच – ङ,ञ,ण,न,म है। अपने वर्गों में स्थिति के आधार पर इन्हें पंचमाक्षर कहा जाता है।
उच्चारण स्थान के आधार पर वर्ण –
स्वर हो या व्यंजन सभी वर्ण मुँह के भिन्न-भिन्न भागों से बोले जाते हैं। मुख के 6 भाग हैं – कण्ठ, तालु, मूर्द्धा, दाँत, ओठ, नाक। हिन्दी के सभी वर्णों का उच्चारण इन्ही के माध्यम से होता है।
कण्ठव्य –
कण्ठ व निचली जीभ के स्पर्श से बोले जाते हैं। उदाहरण – अ, आ, क, ख, ग, घ, ङ, ह, विसर्ग।
तालव्य –
तालु व जीभ के स्पर्श से बोले जाते हैं। उदाहरण – इ, ई, च, छ, ज, झ, ञ, य, श।
मूर्द्धन्य –
मूर्द्धा व जीभ के स्पर्श से बोले जाते हैं। उदाहरण – ऋ, ट, ठ, ड, ढ, ण, र, ष।
दन्त्य –
दाँत व जीभ के स्पर्श से बोले जाते हैं। त, थ, द, ध, न, ल, स।
ओष्ठ्य –
दोनो ओठों के स्पर्श से बाले जाते हैं। उ, ऊ, प, फ, ब, भ, म।
कण्ठतालव्य –
कण्ठ व तालु में जीभ के स्पर्श से बोले जाते हैं। उदाहरण – ए, ऐ।
कण्ठोष्ठ्य –
कण्ठ द्वारा जीभ और ओठों के कुछ स्पर्श से बोले जाते हैं। उदाहरण ओ, औ।
दन्तोष्ठ्य –
दाँत से जीभ और होठों के कुछ योग से बोले जाते हैं। उदाहरण – व।
बलाघात (स्वराघात) –
शब्द बोलते वक्त उच्चारण की स्पष्टता के लिए जब किसी अक्षर पर विशेष बल दिया जाता है, तब इसे बलाघात या स्वराघात कहा जाता है। इस क्रिया में सामान्यतः यह बल किसी शब्द के पहले अक्षर पर लगाया जाता है।
मात्रा –
जब स्वरों का प्रयोग व्यंजन के साथ में होता है तो स्वरों का स्वरूप बदल जाता है। स्वरों के बदले हुए इसी स्वरूप को मात्रा कहते हैं। मात्राएं तीन प्रकार की हैं हृस्व, दीर्घ, प्लुत। दीर्घ में हृस्व से दोगुना और प्लुत में तीन गुना समय लगता है। प्लुत का प्रयोग संस्कृत में होता है हिन्दी में नहीं। मात्राएं स्वरों से ही बनती हैं, व्यंजनों से नहीं। व्यंजनों को स्वरों के सहारे ही बोला जाता है। छन्दशास्त्र में हृस्व मात्रा को लघु और दीर्घ मात्रा को गुरु कहा जाता है। हृस्व स्वर मूल या एकमात्रिक कहलाते हैं। इनकी उत्पत्ति दूसरे स्वरों से नहीं होती। जैसे – अ, इ, उ, ऋ। दीर्घ स्वर किसी मूल (हृस्व) स्वर को उसी स्वर के साथ मिलाने से जो स्वर बनता ही उसे दीर्घ स्वर कहा जाता है। जैसे आ(अ+अ), ई(इ+इ), ऊ(उ+उ), ए(अ+इ), ऐ(अ+ए), ओ (अ+उ), औ (अ+ओ)। इनके उच्चारण में दो मात्राओं का समय लगता है। इन्हें द्विमात्रिक स्वर कहते हैं। प्लुत स्वर के उच्चारण में तीन गुना समय लगता है। इसके लिए 3 का अंक लगाया जाता है। जैसे ओ3म्। इसे त्रिमात्रिक स्वर भी कहते हैं। हिन्दी में साधारणतः प्लुत का प्रयोग नहीं होता।
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Frequently Asked Questions:
वर्ण किसे कहते हैं?
वह सबसे छोटी ध्वनि जिसे तोड़ा न जा सके अथवा जिसके खंड न किये जा सकें। उस सबसे छोटी ध्वनि को ही वर्ण कहते हैं। वर्ण के दो भेद (स्वर और व्यंजन) होते हैं।
मात्राएं किसे कहते हैं ?
हिंदी में स्वरों को कभी स्वतंत्र तो कभी व्यंजनों के साथ प्रयोग में लाया जाता है। जब स्वरों को व्यंजन के साथ प्रयोग में लाते हैं तब इनका स्वरूप बदल जाता है। स्वरों के इसी बदले हुए स्वरूप को मात्राएं कहा जाता है।
स्वर किसे कहते हैं?
वे वर्ण जिनके उच्चारण में अन्य वर्णों की आवश्यकता नहीं होती। अर्थात ऐसे वर्ण जो स्वतंत्र रूप से बोले जा सकते हैं, स्वर कहलाते हैं। हिंदी वर्णमाला में स्वरों की कुल संख्या 11 है। स्वर के तीन भेद ‘ह्रस्व स्वर’ , दीर्ध स्वर , प्लुत स्वर’ होते हैं।
व्यंजन किसे कहते हैं ?
हिंदी वर्णमाला के वे वर्ण जिसका उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है, व्यंजन कहलाते हैं। स्वरों की भांति इनका उच्चारण स्वतंत्र अवस्था में नहीं होता। हिंदी वर्णमाला में कुल 33 व्यंजन हैं।