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मध्यप्रदेश के लोक नृत्य, पेंटिंग और मेले
- May 15, 2022
- Posted by: Admin
- Category: Madhya Pradesh Specific Notes MP Patwari Exam MPPSC State PSC Exams
यह लेख मध्य प्रदेश: लोक नृत्य, पेंटिंग और मेलों के बारे में है। यह लेख छात्रों को विभिन्न राज्य परीक्षाओं जैसे एमपीपीएससी, एमपी व्यापम, एमपी जेल प्रहरी, एमपी पुलिस, आदि में अधिक अंक प्राप्त करने में मदद करेगा। मध्य प्रदेश के लोक नृत्य, पेंटिंग और मेलों से संबंधित 4-5 प्रश्न पूछे जा सकते हैं। . कुछ संबंधित तथ्य हैं जो आगामी एमपी राज्य परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं।
मध्यप्रदेश के लोक नृत्य, पेंटिंग और मेले
मध्यप्रदेश के लोक नृत्य
रीना नृत्य: बैगा तथा गौंड स्त्रियों का दीपावली के बाद किया जाने वाला नृत्य है। यह प्रेम प्रसंग पर आधारित होता है।
चटकोरा नृत्य :कोरकू आदिवासियों का नृत्य है।
भगौरिया नृत्य:भीलों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।
मटकी नृत्य: मालवा का एकल नृत्य है। जो विभिन्न अवसरों जैसे विवाह आदि पर किया जाता है| यह अहीर और गड़रिया जातियों द्वारा किया जाता है
गोंचो नृत्य: गोंडो द्वारा किया जाता है।
बार नृत्य: कंवर आदिवासियों का नृत्य है।
लहंगी नृत्य:कंजर तथा बंजारों का नृत्य है।
परधौनी नृत्य: विवाह के अवसर पर बैगा आदिवासियों द्वारा बारात की अगवानी के समय किया जाता है।
कानरा नृत्य: मध्य भारत एवं बुंदेलखण्ड में धोबी जाति का नृत्य है।
बरदी नृत्य:यह ग्वाल जनजाति के लोगों से सम्बंधित है। इस नृत्य में चरवाहा जिसकी गाय चराता है, उसके घर जाकर नृत्य करता है और ईनाम प्राप्त करता है।
बधाई नृत्य:बुंदेलखण्ड क्षेत्र में खुशी के अवसर पर किया जाता है।
सुवा नृत्य:यह नृत्य बैगा जनजाति में प्रचलित है। यह नृत्य बघेलखंड की बैगा जनजाति द्वारा धान की कटाई के समय पर किया जाता है
सैरा नृत्य:सैरा नृत्य गणगौर उत्सव पर किया जाता है, जो गुजरात के डांडिया नृत्य जैसा है।
मध्यप्रदेश की लोक चित्रकला
माण्डना : यह लोकचित्र कला मालवा और निमाड़ में लोकप्रिय है| जो भूमि अलंकरण के रूप में माण्डना को त्यौहारों, विशेष रूप से दीपावली के समय पर आंगन में बनाया जाता है।
चित्रवण: यह लोकचित्र कला मालवा क्षेत्र में लोकप्रिय है जो विवाह के समय घर की मुख्य दीवार पर बनाया जाने वाला भित्ति चित्र होता है |
जिरोती यह लोकचित्र कला निमाड़ क्षेत्र में लोकप्रिय है जो हरियाली अमावस्या को भित्ति चित्र बनाया जाता है।
मोरते:यह लोकचित्र कला बुंदेलखण्ड क्षेत्र में लोकप्रिय है जो विवाह के समय मुख्य दरवाजे पर पुतरी का भित्ति चित्र है
नौरता/नवरत : यह लोकचित्र कला बुंदेलखण्ड क्षेत्र में लोकप्रिय है जो नवरात्रि में मिट्टी, गेरू, हल्दी से कुंवारी कन्याओं द्वारा बनाया जाने वाला भित्ति चित्र है
थापा: यह लोकचित्र कला निमाड क्षेत्र में लोकप्रिय है जो सेली सप्तमी पर हाथ का थापा के बनाया जाता है।
कंचाली भरना: यह लोकचित्र कला निमाड़ क्षेत्र में लोकप्रिय है जो विवाह के अवसर पर दूल्हा-दुल्हन के मस्तक पर कंचाली भरी जाती है।
कोहबर: यह लोकचित्र कला बघेलखण्ड क्षेत्र में लोकप्रिय है जो वैवाहिक आनुष्ठानिक भित्ति चित्र है।
छठी चित्र: यह लोकचित्र कला बघेलखण्ड क्षेत्र में लोकप्रिय है जो शिशु जन्म के छठवें दिन बनाया जाता है।
तिलंगा: यह लोकचित्र कला बघेलखण्ड क्षेत्र में लोकप्रिय है जो कोयले में तिल्ली के तेल को मिलाकर तिलंगा का भित्ति चित्र बनाया जाता है।
नेऊरा नमे: यह लोकचित्र कला बघेलखण्ड क्षेत्र में लोकप्रिय है जो भादो माह की नवमी को सुहागिन महिलाएं पारम्परिक भित्ति चित्र बनाकर पूजा करती हैं।
मध्यप्रदेश के मेले
सिंहस्थ मेला – 12 वर्ष के अंतराल के बाद मध्यप्रदेश उज्जैन नगर में क्षिप्रा नदी के किनारे सिंहस्थ का मेला लगता है। संख्या की दृष्टि से इसे राज्य का सबसे बड़ा मेला माना जाता है।
ग्वालियर का व्यापारिक मेला– राज्य में दूसरा सबसे बड़ा मेला ग्वालियर का व्यापार का मेला है। इस मेले की शुरूआत तत्कालीन शासक माधवराव सिंधिया ने 1905 में पशु मेले के तौर पर की थी।
पीरबुधन का मेला- शिवपुरी के सांबरा क्षेत्र में यह मेला अगस्त-सितम्बर में लगता है। मुस्लिम संत पीरबुधन की स्मृति में यह मेला लगाया जाता है। यहां पीरबुधन का मकबरा भी है।
नागाजी का मेला– संत नागाजी की स्मृति में यह मेला मुरैना जिले के पोरसा में अगहन में माह भर चलता है। पहले यहां बंदर बेचे जाते थे। अब सभी पालतू जानवर बेचे जाते हैं।
हीरामन बाबा का मेला– हीरामन बाबा का मेला ग्वालियर और इसके आसपास के क्षेत्रों में प्रसिद्ध है। यह मेला अगस्त और सितम्बर में आयोजित किया जाता है।
तेजाजी का मेला– गुना जिले में पिछले सौ से ज्यादा वर्षा से यह मेला लग रहा है। तेजाजी की जयंती भाद्रपद शुक्ल दशमी पर यह मेला आयोजित होता है।
महामृत्युंजय का मेला- बसंत पंचमी और शिवरात्रि पर रीवा जिले में महामृत्युंजय के मंदिर पर यह मेला लगता है। यह बघेलखण्ड का एक प्रमुख धार्मिक मेला है।
अमरकंटक का शिवरात्रि मेला– नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक में शिवरात्रि पर बड़ा ही भव्य मेला लगता है।
चंडी देवी का मेला– सीधी जिले के घोघरा में यह मेला लगता है। यह क्षेत्र का प्रमुख धार्मिक मेला है।
काना बाबा का मेला– हरदा जिले के सोढलपुर नामक गांव में कानाबाबा की समाधि पर यह मेला लगता है। यह मेला लगभग पौने तीन वर्ष पुराना है।
धमोनी का उर्स– सागर जिले का धमोनी अपने आप में प्रमुख ऐतिहासिक स्थान है। यहां दो मुस्लिम संतों बालजती शाह और मस्तान अली शाह की मजारें हैं। हर साल यहां मार्च-अप्रैल माह के मध्य छः दिवसीयय उर्स आयोजित किया जाता है।
मठ घोघरा का मेला- जिले के मौंथन नामक स्थान पर शिवरात्रि को 15 दिवसीय मेला लगता है। यहां पर प्राकृतिक झील और गुफा भी है।
गड़ाकोटा का रहस मेला– गढ़ाकोटा में प्रतिवर्ष फरवरी में बसंत पंचमी से एक माह तक आयोजित होने वाला यह मेला क्षेत्र के प्राचीन मेलों में से एक माना जाता है।
उल्दन का मेला- सागर जिले के ग्राम उल्दन के निकट धसान और आंडेर नदियों के संगम पर शिव-पार्वती के मंदिर पर मकर संक्रांति का भव्य मेला भरता है।
देवरी का मेला– यह मेला सागर जिले के देवरी में अगहन के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को खांडेराव मंदिर में भरता है। इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग व पार्वती की प्रतिमा है। माना जाता है कि यह मंदिर पांच-छः सौ वर्ष प्राचीन है।
कुम्हेण का मेला- मकर संक्रांति पर ही छतरपुर जिले के महाराजपुर के निकट कुम्हेण नदी पर एक सप्ताह तक कुम्हेण का मेला लगता है।
चरण पादुका का मेला- छतरपुर जिले के चरण पादुका में भी मकर संक्रांति के अवसर पर मेले का आयोजन किया जाता है। मकर संक्रांति के इस मेले को लोग शहीद मेला भी कहते हैं।
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