मध्य प्रदेश के प्राचीन इतिहास पर नोट्स
- May 6, 2022
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- Category: Madhya Pradesh Specific Notes
मध्यप्रदेश का इतिहास प्रागैतिहासिक काल के बाद शुरु हुआ जब पृथ्वी ग्रह पर जीवन अपने अपरिपक्व चरण में था। यह क्षेत्र गोंडवाना भूमि से संबंधित है, जो लगभग 300 मिलियन वर्ष पहले पैंजिया नामक बड़े महाद्वीप का एक भाग था । गोंडवाना नाम गोंड नामक जनजाति से पड़ा है, जो शुरुआत से अभी तक यही है ।
मध्य प्रदेश का प्राचीन इतिहास
मध्यप्रदेश का इतिहास प्रागैतिहासिक काल के बाद शुरु हुआ जब पृथ्वी ग्रह पर जीवन अपने अपरिपक्व चरण में था। यह क्षेत्र गोंडवाना भूमि से संबंधित है, जो लगभग 300 मिलियन वर्ष पहले पैंजिया नामक बड़े महाद्वीप का एक भाग था । गोंडवाना नाम गोंड नामक जनजाति से पड़ा है, जो शुरुआत से अभी तक यही है ।
पूर्व ऐतिहासिक काल
- पूर्व-ऐतिहासिक काल में इस क्षेत्र में आदिम जन निवास करते थे। जीवाश्म, पूर्व-ऐतिहासिक चित्रकला और मूर्तियां इस क्षेत्र में उनकी उपस्थिति के प्रमाण हैं ।
- आदिम जनजातियां गुफाओं में या नदी तट पर निवास करती थीं । वे भोजन के लिए शिकार पर निर्भर थे। उन्होंने शिकार के लिए पत्थर के औजारों का इस्तेमाल किया । मध्यप्रदेश के भोपाल, रायसेन, छनेरा, नेमावर, मोजावाड़ी, महेश्वर, देहगांव, बरखेड़ा, हंडिया, कबरा, सिघनपुर, आदमगढ़, पंचमढ़ी, होशंगाबाद, मंदसौर तथा सागर के अनेक स्थानों पर इनके रहने के प्रमाण मिले हैं।
- प्राचीन गुफाओं और चट्टानों की दीवारों पर विभिन्न चित्रकलाओं को देखा जा सकता है। होशंगाबाद के निकट की गुलओं, भोपाल के निकट भीमबैठका की कंदराओं तथा सागर के निकट पहाड़ियों से प्राप्त शैलचित्र इसके प्रमाण हैं।
- ये शैलचित्र मंदसौर की शिवनी नदी के किनारे की पहाड़ियों, नरसिंहगढ़, रायसेन, आदमगढ़, पन्ना रीवा, रायगढ़ और अंबिकापुर की कंदराओं में भी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं।
ताम्रपाषाणयुगीन संस्कृति
- प्राचीन सभ्यता में तांबे और पत्थर का इस्तेमाल होता था। इसका विकास नर्मदा की घाटी में लगभग 2000 ईसा पूर्व हुआ । यह सभ्यता हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सभ्यता के समकालीन थी। महेश्वर, उज्जैन (नागदा), सागर (ऐरण), इंदौर (आजादनगर), टोडी, कायथा, बरखेड़ा आदि इस सभ्यता के कुछ प्रमुख क्षेत्र थे ।
- पुरातत्वविदों ने इन क्षेत्रों में पत्थर और तांबे के उपकरण, मिट्टी के बर्तन, घरेलू सामान, मनके, मिट्टी के पात्र आदि जैसी कई वस्तुओं का पता लगाया है। बालाघाट और जबलपुर में, तांबे के बर्तन और उपकरण पाए गए थे ।
- इस क्षेत्र में पाए जाने वाले विभिन्न औजार और कृषि उपकरण बताते हैं कि इस सभ्यता के लोग केवल शिकार पर निर्भर नहीं थे, बल्कि वे कृषि भी करते थे। कृषि के अलावा, वे मिट्टी के बर्तन, औजार बनाने की कला भी जानते थे और अपनी कृषि उपजों को संग्रहीत करते थे। यह भी पाया गया है कि उन्होंने जानवरों को पालतू बनाया और कुछ घटनाओं से पता चलता है कि उनके ईरान और बलूचिस्तान जैसे देशों के साथ विदेशी संपर्क भी थे।
- डा. एच.डी. सांकलिया ने नर्मदा घाटी के महेश्वर, नावड़ा, टोड़ी, चोली और डॉ.बी.एस. वाकणकर ने नागदा-कायथा में इसे खोजा था।
ताम्र पाषाण काल के प्रमुख स्थल –
कायथा– यह पहली ताम्रपाषाण बस्ती थी जिसका अस्तित्व 1380 से पूर्व तक रहा | कायथा वराह मिहिर की जन्मभूमि थी |
एरण – यह सागर जिले में स्थित है तथा इसका प्राचीन नाम ऐरिकिण था | इस ताम्र स्थल का समय 2000 ईसवी पूर्व से 700 ईसवी पूर्व माना जाता है | यहाँ से तांबे की कुल्हाड़ियां सोने के गोल टुकड़े चित्र मृदभांड ताम्र कालीन बस्ती के प्रमाण आदि प्राप्त हुए हैं |
नवदाटोली – यह महेश्वर में नर्मदा तट पर स्थित है, जिसका अस्तित्व 1637 ई.पूर्व के मध्य माना जाता है | यहां से झोपड़ीनुमा मिट्टी के घरों के साक्ष्य मिले हैं, जो चौकोर या आयताकार होते थे |
आवरा – मंदसौर जिले में स्थित आवरा ग्राम से ताम्रपाषाण से लेकर गुप्त काल तक की विभिन्न अवस्थाएं एवं संबंधित सामग्री मिली है |
डांगवाला – यह उज्जैन से 32 किलोमीटर दूर बस्ती में स्थित है |
नागदा – यह उज्जैन जिले में चंबल नदी के तट पर है | इस ताम्रपाषाण बस्ती से भी मृदभांड और लघु पाषान के अस्त्र आदि प्राप्त हुए हैं |
खेड़ीनामा – यह होशंगाबाद जिले में स्थित है, जो 1500 पूर्व पुरानी ताम्रपाषाण बस्ती है |
आर्य
- ऋ़ग्वेद में मध्य प्रदेश का नाम “दक्षिणापथ” और “रेवान्तर” उल्लेखित किया है | आर्यों के आगमन ने भारत और मध्य प्रदेश की सभ्यता के इतिहास को भी परिवर्तित किया। वे इस क्षेत्र में बस गए और मध्य प्रदेश लगातार वासित होता गया। वे मुख्य रूप से मालवा के पठार में रहते थे । इतिहास में समय-समय पर मालवा पर कईं शासकों का शासन रहा । नवपाषाण काल की शुरुआत के साथ, मालवा ‘अवंती’ क्षेत्र में प्रथम शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक के रूप में स्थापित हुआ।
- अवंती की राजधानी उज्जैन थी और इसमें पश्चिमी मालवा का प्रमुख भाग शामिल था। यह उत्तरी भारत के सोलह महाजनपदों में से एक था । यह हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म की स्थापना का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गया ।
- अवंती की दो राजधानी थी- उत्तरी अवंती जिसकी राजधानी उज्जैनी थी तथा दक्षिणी अवंती जिसकी राजधानी माहिष्मती थी | इन दोनों क्षेत्रों के बीच नेत्रावती नदी बहती थी |
- माहिष्मती भी पश्चिमी मालवा में एक बड़ा शहर था । बेतवा नदी के तट पर विदिशा पूर्वी मालवा का सबसे बड़ा शहर था और ऐरण एक सैन्य मुख्यालय था ।
- अवंती के दो प्रसिद्ध नगर कुररधर और सुदर्शन पुर का वर्णन बौद्ध ग्रन्थ में मिलता है |
- ‘पेरिप्लस ऑफ़ एरिथ्रियन सी’ नामक पुस्तक में उज्जैन का नाम ‘ओजिनी’ लिखा गया है |
प्राचीन जनपद के परिवर्तित नाम
- अवंती (अवंतिका)- उज्जैन
- वत्स -ग्वालियर
- चेदि – खजुराहो
- अनूप – निमाड़(खंडवा)
- दशर्ण – विदिशा
- तुन्डीकेर -दमोह
- नलपुर – नरवर (शिवपुरी)
मौर्य साम्राज्य
- लगभग 320 ईसा पूर्व चंद्रगुप्त मौर्य ने उत्तर भारत को संगठित किया और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की । मौर्य साम्राज्य में पूरा आधुनिक मध्य प्रदेश शामिल था ।
- मध्य प्रदेश के मौर्यकालीन इतिहास का साक्ष्य जबलपुर की सिहोरा तहसील के अंतर्गत रूपनाथ ग्राम की चट्टान पर उकेरे गये अशोक के शिलालेख से प्रमाणित होता है |
- मध्य प्रदेश के कई भागों से अशोक के अभिलेख भी प्राप्त किए गए हैं। एक अभिलेख जबलपुर जिले के रूपनाथ में और दूसरा दतिया जिले में पाया गया ।
- मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित गुज्जरा में अशोक के लघु शिलालेख में अशोक का नाम ‘देवानां प्रिय पियदस्सी’ के रूप में उल्लेखित है |
- मौर्य युग में चार व्यापारिक मार्ग थे जिनमें से तीसरा मार्ग दक्षिण में प्रतिष्ठान से उत्तर में श्रावस्ती तक था जिसमें मध्य-प्रदेश के माहिष्मती उज्जैनी और विदिशा नगर स्थित थे | चौथा मार्ग भ्रगूकच्छ क्षेत्र मथुरा तक था जिस के मार्ग में उज्जैनी स्थित था |
- अवंती के माहिष्मती महेश्वर में सूती वस्त्र बनाने का केंद्र था | मौर्य कालीन ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण शिलालेख मध्यप्रदेश के करीतलाई, खरकाई, कसरावद, आरंग रामगढ़ स्थान से मिले है | इसके अतिरिक्त बेसनगर विदिशा से मौर्यकालीन यक्ष की प्रतिमा हुई है |
मध्य प्रदेश से प्राप्त अशोक के लघु शिलालेख |
रूपनाथ- जबलपुर गुजरी- दतिया |
मध्य प्रदेश से प्राप्त अशोक के लघु स्तम्भ लेख- |
सांची- रायसेन सारोमारो- शहडोल |
उत्तर मौर्य साम्राज्य
मौर्य वंश के पतन के बाद, शुंग और सातवाहनों ने मध्य प्रदेश पर शासन किया । 100 ईसा पूर्व तक सातवाहनों ने इस क्षेत्र पर शासन किया। इस दौरान शक और कुषाणों ने भी यहां शासन किया। कुषाण के समय की कुछ मूर्तियां जबलपुर में प्राप्त की जा सकती हैं। उत्तर का सातवाहन राज-वंश और पश्चिम के शक राजवंश ने पहली और तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान इस क्षेत्र पर शासन के लिए युद्ध किया । सातवाहन राजा, गौतमीपुत्र सतकर्णी ने शक शासकों को हराया और दूसरी शताब्दी ईस्वी में मालवा के कुछ भागों को जीत लिया।
शुंग
पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य साम्राज्य का अंत किया और वह मगध का नया राजा बना। उनके साम्राज्य का विस्तार नर्मदा तक था और इसमें पाटलिपुत्र, अयोध्या, विदिशा शामिल थे। मेरुतुंग ने अवंती को पुष्यमित्र के स्वामित्व में शामिल किया। विदर्भ राज्य यज्ञसेन और माधवसेन के बीच विभाजित था, जिन्होंने पुष्यमित्र की अधीनता को स्वीकार किया था।
पुष्यमित्र शुंग ने विदिशा को अपनी राजधानी बनाया था तथा भरहुत स्तूप का निर्माण करवाया था | पुष्यमित्र शुंग ने साँची स्तूप की लकड़ी की वेदिका के स्थान पर पत्थर की वेदिका का निर्माण करवाया था |
गुप्त काल
- चौथी शताब्दी में, मध्य भारत में समुद्रगुप्त एक महान शासक के रूप में उभरा । प्रयाग-प्रशस्ति के अनुसार उन्होंने देशव्यापी विजय हासिल की और बेतूल तक विजय प्राप्त की। उन्होंने गुप्त वंश की स्थापना की और उत्तर एवं दक्षिण भारत में शासन किया और पश्चिम में शकों को भी हराया।
- मध्य प्रदेश में बाघ गुफाओं (धार) के शैलकर्तित मंदिर, इस क्षेत्र में गुप्त वंश की उपस्थिति को प्रमाणित करते हैं। बाद में चंद्रगुप्त द्वितीय ने मालवा पठार से शक साम्राज्य को उखाड़ फेंका। उन्होंने नर्मदा के दक्षिणी क्षेत्रों पर शासन करते हुए वक और वाकटक के साथ वैवाहिक गठबंधन भी स्थापित किए।
- बाद में पुष्यमित्र और हूण ने राज्य पर हमला किया और कुमार गुप्त प्रथम के पुत्र एवं उत्तराधिकारी स्कंदगुप्त को पराजित किया। गुप्त साम्राज्य का पतन कन्नौज के हर्षवर्धन के शासन के बाद हुआ।
- मध्य प्रदेश के विदिशा तथा एरण से गुप्त शासक रामगुप्त के तांबे के सिक्के प्राप्त हुए हैं, जिन पर गुप्त लिपि में रामगुप्त लिखा हुआ है | गरुड़ गुप्त वंश का राजकीय चिन्ह था |
- चन्द्र गुप्त द्वितीय के तीन अभिलेख पूर्वी मालवा क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं, जो भैंसला (विदिशा) के समीप उदयगिरी पहाड़ी से प्राप्त हुए हैं |
- गुप्तकाल में ही उदयगिरी की गुफाओं और किदवा के वैष्णव मंदिर का निर्माण हुआ था |
हूण
गुप्त वंश के पतन के बाद, कईं शासकों ने इस क्षेत्र पर हमला किया और कुछ समय के लिए शासन किया। हूण उनमें से एक थे। हूणों को मध्य एशिया की एक निर्दयी जनजाति माना जाता था। उन्होंने तोरमाण के नेतृत्व में मध्य भारत को आसक्त किया। लगभग 530 ईस्वी के लगभग तोरमाण के पुत्र यशोधर्मा ने हूणों को हराया और 5वीं शताब्दी के अंत तक इस क्षेत्र पर शासन किया।
मिहिरकुल के शासनकाल के पन्द्रहवें वर्ष का ग्वालियर अभिलेख मध्य प्रदेश में हूणों के शासन का साक्ष्य देते हैं |
राष्ट्रकूट
माहिष्मती जैसे विभिन्न छोटे साम्राज्यों के शासन करने के बाद 7वीं शताब्दी में राष्ट्रकूट सत्ता में आए। उनकी राजधानी विदर्भ थी और उन्होंने इसके बाद मालवा पर विजय प्राप्त की।
राष्ट्रकुट वंश की एक शाखा 9वी शति में बैतूल क्षेत्र में भी शासन कर रही थी। इनके एक राजा युहासूर के ताम्रपत्र तिसरखेंडी और मूलताई से मिले है । मान्यखेत के राजा गोविन्द तृतीय ने नागभट् को परास्त कर उज्जैन में दरबार लगाया था।
गुर्जर–प्रतिहार
आठवीं शताब्दी में, गुर्जर और प्रतिहार शासन में आए। उन्होंने प्रसिद्ध नागभट्ट के नेतृत्व में शासन किया। उन्होंने मालवा पर शासन किया। वे राजपूत थे। प्रारंभ में, उन्होंने मालवा को अपनी राजधानी बनाया और फिर इसे कन्नौज में स्थानांतरित किया ।
कलचुरी
कलचुरी वंश का संस्थापक कृष्णा राज को माना जाता है | कलचुरी नाम के दो राजवंश थे जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों पर शासन किया । इन राजवंशों ने 10वीं -12वीं शताब्दी तक शासन किया। एक राजवंश पश्चिमी मध्य प्रदेश और राजस्थान के क्षेत्रों पर शासन करता था और चेदि नाम से जाना जाता था । चेदि के कलचुरियों की राजधानी त्रिपुरी (जबलपुर) में थी | दूसरा कर्नाटक के भागों में शासन करता था और उन्हें दक्षिणी कलचुरी के नाम से जाना जाता था।
उत्तरी कलचुरियों ने 550 से 1156 इसवी तक तथा दक्षिणी कलचुरियों ने 620 से 1181 ईसवी तक शासन किया था | इस वंश का संस्थापक कृष्णा राज को माना जाता है इस वंश के तीन राजाओं पकृष्ण राज शंकरगण बुद्ध राज के सिक्के मिलते हैं बुधराज को चालुक्य शासक मंगलेश ने हराकर माहिष्मती पर अधिकार कर लिया था |
परमार
- परमार वंश की स्थापना नर्मदा नदी के उत्तर मालवा (प्राचीन अवन्ती) क्षेत्र में उपेन्द्र अथवा कृष्णराज द्वारा की गयी थी | 946 ईस्वी से परमारों ने मध्य प्रदेश पर विजय प्राप्त करनी शुरू की, उन्होंने लगभग 350 वर्षों तक मध्य प्रदेश पर शासन किया। उनकी विजय तब प्रारंभ हुई, जब उन्होंने गुर्जर और प्रतिहारों को चुनौती देना शुरू किया। परमारों की प्रारम्भिक राजधानी उज्जैन में थी पर कालान्तर में राजधानी ‘धार’ में स्थानान्तरित कर ली गई थी । 946 ईस्वी में वारिसिम्हा द्वितीय की निगरानी में परमार आसक्त हुए और राष्ट्रकूटों की मदद से मालवा पर जीत हासिल की। महान राजा भोज इस राजवंश के अंतिम शासक थे। भोज प्रथम एक विद्वान और लेखक थे, जिन्होंने पतंजलि के योग शास्त्र की समीक्षा भी की ।
- राजा भोज ने भोजताल (भोपाल ) और धार में सरस्वती मंदिर का निर्माण कराया था |
- मंगाई लेख(1058) के अनुसार परमार राजा भोज की धार नगरी पर चालुक्य नरेश सोमेश्वर द्वितीय ने आक्रमण किया था, जिसमें राजभोज की हार हुई थी |
चंदेल
- चंदेल वंश का संस्थापक नन्नुक था। इसकी राजधानी खजुराहो थी तथा प्रारंभ में इसकी राजधानी महोबा (कलिंजर) थी । चंदेल वंश का प्रथम स्वतंत्र एवं सबसे प्रतापी राजा यशोवर्मन था । चंदेल वंश के शासकों ने 900 से 1130 ईस्वी के बीच खजुराहो के मंदिरों का निर्माण कराया था।
- यशोवर्मन ने कन्नौज पर आक्रमण कर प्रतिहार राजा देवपाल को हराया तथा उससे एक विष्णु की प्रतिमा प्राप्त की , जिसे उसने खजुराहो के विष्णु मंदिर में स्थापित किया था ।
- महोबा से प्राप्त अभिलेख के अनुसार चंदेल वंश के तीसरे शासक जयशक्ति ने अपने द्वारा शासित प्रदेश का नाम अपने नाम पर जेजाकभुक्ति रखा था |
- मध्यप्रदेश में समय-समय पर विभिन्न साम्राज्यों का उत्थान और पतन हुआ। किसी भी साम्राज्य के विकास के लिए यह हमेशा एक आदर्श स्थान रहा है । इतिहास के प्राचीनकाल में चंदेल और कुछ छोटे शासक मध्य प्रदेश पर शासन करने वालों में से एक थे ।
सातवाहन वंश-
925 से 1370 ईस्वी तक, सातवाहन राजवंश ने भी मध्य प्रदेश के कुछ क्षेत्रों पर शासन किया। बुंदेलखंड से प्रारंभ करते हुए, उन्होंने मालवा तक विस्तार किया और विदिशा एवं ग्वालियर तक भी गए। लेकिन इतिहास से उनका गायब होना अप्रत्याशित था। पृथ्वीराज चौहान की हार के तुरंत बाद, उनके वंश का पतन हो गया।
सातवाहन वंशीय शातकर्णी के द्वारा मालवा पर शासन करने के साक्ष्य विभिन्न पुराणों में मिले हैं | इसके साथ ही उज्जैन देवास, तेवर, त्रिपुरी आदि से सातवाहन वंश के सिक्के प्राप्त हुए हैं | सात वाहन वंशीय राजाओं के काल में रोम के साथ व्यापार सम्बंधित है जिसके साक्ष्य चकर खेडा तथा बिलासपुर से मिलने वाले रोमन सिक्के हैं |
पाण्डय राज्य-
अमरकंटक (अनूपपुर) के आसपास मैकल श्रेणीयों में पाण्डय वंश की स्थापना राजा जयबल ने कीथी। भारत बल इस वंश का अंतिम राजा था।
शैलवंश-
महाकौशल क्षेत्र में स्थित शैल राज्य से संबंधित जानकारी राधौली (बालाघाट) तामपत्र से होती है। इसका प्रथम राजा श्रीवर्धन और अंतिम राजा जयवर्धन था। राधौली तामपत्र जयवर्धन ने उत्कीर्ण करवाया था ।
गुहिलवंश
जीरण (मंदसौर) अभिलेख से मन्दसौर में गुहिल वंश (1000-1050 ई.) के शासन की पुष्टि होती है ।विग्रह पाल इसका पहला ज्ञात शासक है।
कच्छापघाट वंश :
यद्यपि इस वंश की तीन शाखाएं क्रमशः ग्वालियर, दुवकुण्ड और नरवर में स्थापित हुई, लेकिन ग्वालियर शाखा ही महत्वपूर्ण रही। ग्वालियर से प्राप्त विभिन्न अभिलेखों में इस वंश का उल्लेख है। पहला शासक लक्ष्मण था जिसके पुत्र वज्रदामन ने ही कन्नौज से ग्वालियर को छीनकर राज्य विस्तार किया था। किर्तीराज (1021 ई.) को महमूद गजनवी ने हराया था। अंतिम राजा मधुसूदन था ।
विभिन्न अभिलेख ओर उसके वंश-
अभिलेख | वंश |
श्रीधर वर्मा का अभिलेख समुद्रगुप्त का अभिलेख बुधगुप्त का अभिलेख तोरभाण का अभिलेख भानुगुप्त का अभिलेख | शक शासक गुप्त सम्राट गुप्त सम्राट हूण शासक गुप्त सम्राट (गोपराज सती स्तंभ अभिलेख या प्रथम सती अभिलेख) |
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